Tajmahal




1. ध्‍वस्‍त करने को सात लाख में ताजमहल बेच दिया था अंग्रेजों ने
- इतिहासकार प्रो. रामनाथ ने 'द ताजमहल' बुक में लिखा है कि ताजमहल को अंग्रेजों ने बेच दिया था। इसे तोड़ने की योजना थी। ताकि कीमती पत्थरों को ब्रिटेन ले जाया जा सके और बाकी संगमरमर को बेचकर सरकारी खजाना भरा जा सके।
- वर्ष 1828 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक ने कोलकाता के अंग्रेजी दैनिक जानबुल में 26 जुलाई 1831 के अंक में ताजमहल को बेचने का एक एड पब्लिश किया था। उस समय अंग्रेजी शासन की राजधानी कोलकाता थी।
- ताजमहल को मथुरा के सेठ लक्ष्‍मीचंद ने सात लाख की बोली लगाकर खरीद लिया था।
- नीलामी में ये भी शर्त थी कि ताजमहल को तोड़कर इसके खूबसूरत पत्थरों को अंग्रेजों को सौंपना होगा।
- अंग्रेज शासक के विनाशकारी आदेश की भनक ताजमहल के पुराने सेवादारों को लग गई थी। इसके बाद सूचना फैलते हुए लंदन चली गई।
- लंदन में एसेंबली में नीलामी पर सवाल उठे। तब गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक ने नीलामी निरस्त कर दी।
2. ताजमहल के गेस्‍ट रूम में हनीमून मनाते थे नव विवाहित अंग्रेज कपल
- इतिहासकार राजकिशोर राजे अपनी बुक 'तवारीख-ए-आगरा' में लिखते हैं कि ब्रिटिश शासन के दौरान मुख्‍य स्‍मारक के बगल का गेस्‍ट रूम किराए पर दिया जाता था।
- इसमें नव विवाहित अंग्रेज कपल हनीमून मनाते थे। इसका कितना किराया था, इसका रिकॉर्ड नहीं है।
- ताजमहल के मुख्‍य स्‍मारक के एक तरफ लाल रंग की मस्जिद है और दूसरी तरफ गेस्‍ट रूम।
- ताजमहल के गेस्‍ट रूम की पहली मंजिल पर पहले दीवारें बंद नहीं थी। अंग्रेजों के समय में इसमें दीवारें जोड़ी गई। इन्‍हें कमरों में तब्‍दील कर दिया गया था।
3. 466 किलो सोने का था ताजमहल का कलश, अंग्रेजों ने उतारकर लगवाया तांबे का
- इतिहासकार राजकिशोर राजे के अनुसार, ताजमहल के निर्माण के समय बादशाह शाहजहां ने इसके शिखर पर स्‍वर्ण कलश लगवाया था।
- इसकी लंबाई 30 फीट 6 इंच थी। कलश में 40 हजार तोला (466 किलोग्राम) सोना लगा था।
- ताजमहल का कलश तीन बार बदला गया।
- साल 1810 में अंग्रेजी सेना के अफसर जोसफ टेलर ने ताजमहल के शिखर पर लगा स्‍वर्ण कलश उतरवा दिया।
- उसके स्‍थान पर हूबहू सोने की पालिश किया हुआ तांबे का कलश स्‍थापित करवा दिया था।
- यदि स्‍वर्ण कलश आज होता तो इसकी कीमत करीब 130 करोड़ रुपए होती।
- ताजमहल के कलश 1876 और 1940 में फिर से बदले गए। अब यह कलश कांसे का है।
- गेस्‍ट रूम के सामने फर्श पर बनी कलश की अनुकृति साल 1888 में अंग्रेज पुरातत्‍वेत्‍ताओं के निर्देश पर नाथूराम नामक कलाकार ने बनाई थी।
- ताजमहल के निर्माण के समय बादशाह शाहजहां ने खास तौर पर लाहौर के निवासी काजिम खान को आगरा बुलाया था। उसने ठोस स्‍वर्ण कलश तैयार किया था।
इस कलश पर चंद्रमा बना है
4. ताज के इमाम को शाहजहां देते थे 15 अशर्फियां, अब मिल रहे 15 रुपए पगार
- ताजमहल के इमाम का रुतबा शाहजहां के समय में काफी था।
- उस वक्‍त इमाम को हर महीने सोने की 15 अशर्फियां मिलती थी।
- अंग्रेजों के राज में इमाम को पगार के रूप में 15 चांदी के सिक्के दिए जाने लगे। देश आजाद हुआ, भारतीय मुद्रा के रूप में रुपया आया तो इमाम की पगार 15 रुपए कर दी गई।
- आज इमाम को महीने के 15 रुपए मिल रहे हैं। यह रकम उन्‍हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) देता है, जिसके चपरासी की पगार भी 25 से 30 हजार रुपए महीने की है।
- ताजमहल मस्जिद में पहले 40 साल तक मौलाना शाबिक अली नमाज पढ़ाते रहे थे। उनके इंतकाल के बाद उनके मंझले बेटे मौलाना सादिक अली ने साल 2004 से नमाज पढ़ाने का जिम्मा लिया।

5. भूत और जिन्‍न नहीं बनने दे रहे थे ताजमहल, अरब के बुखारी भाइयों ने किया था उपाय
- दरगाह कमेटी के वरिष्‍ठ उपाध्‍यक्ष मुईन बाबूजी के अनुसार, ताजमहल के निर्माण के वक्‍त भूत-जिन्‍न नींव को ध्‍वस्‍त कर देते थे। वे ताज की बुनियाद रखने नहीं
दे रहे थे और करीगरों को डराकर भगा देते थे।
- इसका तोड़ निकालने के लिए शाहजहां को इमामों ने अरब में बुखारा शहर के पीर हजरत अहमद बुखारी को बुलाने का सुझाव दिया।
- बादशाह के बुलावे पर पीर अपने साथ भाई सैय्यद जलाल बुखारी शाह, सैय्यद अमजद बुखारी शाह और सैय्यद लाल बुखारी शाह और सैंकड़ों सहायकों के साथ
आगरा आए।
- शाहजहां सभी पीर बाबाओं को खुद लेने गए थे। चारों पीर बंधुओं ने आगरा में ताजमहल के नींव परिसर पर पहुंचकर कुरान और कलमों की पाठ करवाई थी।
- इसके बाद शाहजहां के हाथों नींव रखवाकर ताजमहल को बनवाने का काम शुरू करवाया। तभी ताजमहल का निर्माण पूरा हो सका।
- इन चारों पीर भाइयों के मजार ताजमहल के चारों तरफ बने हैं। माना जाता है कि जब तक ये मजार यहां हैं ताजमहल को कुछ नहीं होगा।
6. ताजमहल का नक्‍शा ईसा आफंदी ने ख्‍वाब में देखकर बनाया था
- कहा जाता है कि ताजमहल का नक्‍शा सपने से उतारा हुआ है। जब शाहजहां को हिंदुस्‍तान और आस-पास के आर्किटेक्‍ट के नक्‍शे पसंद नहीं आए, तब वह उदास
हो गया था।
- इसी के बाद ईसा आफंदी को उसके गुरु हजरत शाहरयार मोहम्‍मद चिश्‍ती साबरी ने ख्‍वाब दिखाया और ईसा ने इसका नक्‍शा बना दिया।
- यही नक्‍शे के आधार पर ताजमहल बना। उनका मजार आगरा के मध्‍य इलाके में स्थित पालिवाल पार्क के पास है।
- कहा जाता है कि ईसा आफंदी ने अपने गुरु हजरत शाहरयार को शाहजहां की योजना की जानकारी दी।
- इसके बाद हजरत शहरयार ने ईसा को अपने सिर से बंधे काले चोगे को ओढ़ाया। कुछ देर बार ईसा के ख्‍वाब में जो तस्‍वीर दिखाई दी, उसको अपने दिमाग और
आंखों में कैद करने को कहा।
- ईसा के हां करने पर हजरत शहरयार ने उसके सिर से चोगा हटा दिया। ईसा ने ख्‍वाब में दिखे मकबरे का नक्‍शा बना दिया। इसके बाद ईसा के बनाए नक्‍शे पर
मकबरे का निर्माण शुरू करवाया।
7. मिस्र के सुल्‍तान की मस्जिद के लैंप की नकल है ताजमहल में
- ताजमहल में शाहजहां और मुमताज की कब्र के ठीक ऊपर खूबसूरत लैंप दिखता है।
- यह लैंप मिस्र के सुल्‍तान बेवर्सी दि्तीय की मस्जिद की नकल है।
- इसे तैयार करवाने में 108 साल पहले 15 हजार रुपए खर्च हुए थे।
- इससे पहले यहां धुएं वाला लैंप जलता था। इससे पूरे मकबरे में धुंआ फैला रहता था।
- तत्‍कालीन ब्रिटिश वायसराय लार्ड कर्जन जब 18 अप्रैल 1902 को आगरा आए थे। उस वक्‍त जब वह मकबरे में गए तो वहां धुंए से उन्‍हें परेशानी हुई। इसके बाद अगले साल फिर आए और दोबारा यह परेशानी महसूस हुई।
- इतिहासकार राजकिशोर राजे कहते हैं कि कर्जन ने बेहतरीन बिना धुएं वाला खूबसूरत लैंप तलाश करने का आदेश दिया। इसके बाद उसने मिस्र में तैनातान अपने
मित्र लार्ड क्रोमर को लिखा।
- वहां सुल्‍तान बेवार्सी दि्तीय की मस्जिद का लैंप ताजमहल के लिए कर्जन को ठीक लगा।
- तब सुल्‍तान के निर्देश पर इसकी प्रतिकृति वहां के हुनरमंत कारीगर (नक्‍काश) तोदरस वादिर से करवाई गई। ऐसे छोटे-बड़े कई लैंप तैयार करवाए गए।
- कांसे के बने इस लैंब में सोने-चांदी की नक्‍काशी है। उस वक्‍त 15 हजार की लागत में ये लैंप तैयार हुए थे।
- ये लैंप 18 फरवरी 1906 को ताजमहल में पहली बार प्रज्‍जवलित किया गया।
- इसके लिए बड़े पैमाने पर समारोह आयोजित किया गया था। इसमें भारत के रियासतों के राजा और अंग्रेज अफसर शामिल हुए थे।

8. जापानी और पाकिस्‍तानी लड़ाकू विमानों से बचाने के लिए ढंका गया था ताजमहल
- दि्वतीय विश्‍व युद्ध के दौरान दुनिया में दुनिया का अजूबा 'ताजमहल' के विध्‍वंस का खतरा पैदा हो गया था।
- उस वक्‍त ब्रिटेन ने अमेरिकी सेना के सहयोग से ताजमहल को बांस और बल्लियों से पूरी तरह ढंक दिया था। इससे जापान और जर्मनी के युद्धक विमानों को धोखा देने की कोशिश की गई थी।
- भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण (एएसआई) के आगरा सर्किल कार्यालय की लाइब्रेरी में वर्ष 1942 में खींची गई तस्‍वीरें हैं।
- एएसआई के अधीक्षण पुरात्‍तवविद भुवन विक्रम बताते हैं कि दि्वतीय विश्‍व युद्ध के समय मित्र देशों (अमेरिका, ब्रिटेन व अन्‍य) को खूफिया सूचना मिली थी कि
जापान और जर्मनी ताजमहल पर बम बरसाने की कोशिश करने वाले हैं।
- इसी के बाद तुरंत ताजमहल पर बांस व बल्लियों का आवरण चढ़ा दिया गया था।
- उस वक्‍त गुंबद को पूरी तरह से ढंका गया और इसकी तस्‍वीरें ली गईं। बाद में पूरे ताजमहल को ढंका गया था। लेकिन सुरक्षा कारणों से वर्ष 1942 में तस्‍वीरें
नहीं ली गईं।
- आजादी के बाद भारत-पाकिस्‍तान युद्ध के दौरान वर्ष 1971 में ताजमहल को हरे कपड़े से ढंका गया था। ताकि पाकिस्‍तानी विमानों को ताजमहल की जगह
हरियाली नजर आए।

 9. शाहजहां ने नहीं बनवाई थी ताजमहल में मशहूर डायना बेंच
- ताजमहल में सबसे खास एक बेंच है। सेंट्रल टैंक पर स्थित इसे डायना बेंच का नाम दे दिया गया है। इस बेंच पर बैठकर फोटो खिंचवाने को हर पर्यटक बेकरार रहते हैं। ये बेंच शाहजहां ने नहीं बनवाए थे।
- इतिहासकार रविंद्र राठौर कहते हैं कि जब ब्रिटिश वायसराय लार्ड कर्जन 18 अप्रैल 1902 को ताजमहल पहुंचे थे। उस वक्‍त ताजमहल के सामने ऊंचे-ऊंचे पेड़ थे। ऐसे में दूर से ताजमहल देखने में बाधा हो रही थी।
- लार्ड कर्जन ने महत्‍वपूर्ण बैठक कर ताजमहल के बगीचे के स्‍वरूप को सुधारने का आदेश दिया। इसके बाद पेड़ कटवाए गए, ताकि ताजमहल बेहतर दिखे।
- बैठने के लिए ताजमहल के सामने सेंट्रल टैंक वाले चबूतरे पर संगमरमर के स्‍लैब लगवाए गए। इसे अब डायना बेंच कहते हैं।
- यह क्षेत्रीय अभिलेखागार की फाइल नंबर 1/899-1904 में 200 पृष्‍ठों में अंकित है। आगरा के लिए यह फाइल बीतीसदी की 'गोल्‍डेन फाइल' कहलाती है।
- बाद में प्रिंस चार्ल्‍स की दिवंगत पत्‍नी डायना ने इस पर बैठकर तस्‍वीरें खिंचवाईं। इसी के बाद यह बेंच डायना बेंच के नाम से मशहूर हो गया।
10. असली कब्र पर लिखा है अल्‍लाह के 99 नाम
- तहखाने में असली कब्र है और इसकी नक्‍काशी ऊपर के नकली कब्र की अतुलना में साधारण है।
- तहखाने में बनी मुमताज महल की असली कब्र पर अल्लाह के 99 नाम खुदे हैं। - इनमें कुछ हैं 'ओ नीतिवान, ओ भव्य, ओ राजसी, ओ अनुपम…' हैं। शाहजहां की कब्र पर खुदा है, 'उसने हिजरी के 1076 साल में रज्जब के महीने की छब्बीसवीं तिथि को इस संसार से नित्यता के प्रांगण की यात्रा की।'
 11. यहां था ताजमहल बनाने का कारखाना
ताजमहल के पत्थरों पर खराद का काम पास में ही एक टीले पर हुआ करता था। आज यहां बस्ती है। खराद का काम करने वालों के वंशज आज भी यहां रहते हैं। इसके पत्थरों पर की गई बेहद महीन नक्काशी और आकर्षक डिजाइन का आज भी कोई तोड़ नहीं है। ताजमहल के निर्माण के लिए संगमरमरी पत्थर भले ही बाहर से आया हो, लेकिन इसे खूबसूरत बनाने का काम आगरा में ताजमहल के पास ही किया गया है। इसके लिए पूरा कारखाना स्थापित किया गया था। इस जगह को खैराती (खैरादी) टोला के नाम से जाना जाता है। पत्थरों पर खूबसूरत डिजाइन बनाने वालों के वंशज आज भी यहां पर रहते हैं। ताजमहल का निर्माण शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में कराया था।

12. ऊंट और घोड़ों पर जाते थे पत्थर
खैराती टोला के रहने वाले डॉ. सैयद इख्तियार जाफरी ने बताया कि शाहजहां गार्डन के पास स्थित खैराती टोला का नाम पहले खरादी टोला हुआ करता था। समय के साथ इसका नाम खैराती टोला हो गया। खरादी टोला इसलिए कहा जाता था, क्योंकि ताजमहल के पत्थरों की नक्काशी के लिए खराद का काम यहीं होता है। यहां पर पत्थरों पर डिजाइन बनने के बाद घोड़े, ऊंटगाड़ी से पत्थर निर्माण स्थल तक पहुंचाए जाते थे। उस समय पाड़ लगाकर भारी पत्थरों को उंचाई पर पहुंचाना संभव नहीं था, इसलिए खरादी टोला से ही एक रैम्प बनाए गए थे, जो ताजमहल की चोटी तक पहुंचते थे।

13. आज भी यहां रहते हैं वंशज
यहां के रहने वाले अब्दुल गफ्फार ने बताया कि यहां उनके पूर्वजों ने ताजमहल के निर्माण में योगदान किया था। उनके पूर्वजों की मेहनत ताजमहल में लगी है। तभी से यहां पर बस गए हैं। उन्होंने बताया कि ताजमहल का मलबा भी इसी क्षेत्र में फेंका जाता था। आज जो ऊंचे टीले दिखाई देते हैं, वे ताजमहल निर्माण के दौरान खराब होने वाले पत्थरों का वेस्टेज है।

14. नहीं होती रजिस्ट्री
इस जमीन को खरादी टोला के नाम ही किया गया है। इस जमीन की आज भी रजिस्ट्री नहीं होती है। यदि खरीद फरोख्त करनी हो तो खेराती टोला सोसाइटी की रसीद पर ही सारे काम हो जाते हैं।

15. कटरों में रहते थे इंजीनिय़र
ताजमहल के दक्षिण में बने कटरों में इंजीनियर रहा करते थे। निचले स्तर के काम करने वाले श्रमिक, खराद का काम करने वाले लोग खरादी टोला में रहा करते थे। खरादी टोला में ताजमहल बनाने के लिए कारखाना स्थापित किया गया था।

16. कहां है खैराती टोला
खरादी टोला आगरा किला और पुरानी मंडी रोड के बीच में है। इसकी एक दीवार सर्किट हाउस से लगती है। दूसरी ओर सेना का प्रवास है। सड़क के उस पर शाहजहां गार्डन है। यहीं पर एसटीपी स्थापित किया गया है।

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